राज एक्सप्रेस, भोपाल। उत्तरप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में दिखा जहरीली शराब का कहर प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता सबूत है (Liquor Policy India)। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में शराब की बिक्री जारी है, मगर बिहार में अगर शराब पीने से लोग मर रहे हैं, तो यह सरकार पर भी सवालिया निशान है (Liquor Policy)। हमारी सरकारें जब तक शराब को कमाई का जरिया मानती रहेंगी, तब तक शराब के धंधे में लगे लोगों पर कार्रवाई का न तो असर होगा और न ही लोगों में चेतना जागृत होगी।
उत्तरप्रदेश, बिहार व उत्तराखंड में दिखा जहरीली शराब का कहर प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में शराब की बिक्री जारी है, मगर बिहार में अगर शराब पीने से लोग मर रहे हैं, तो यह सरकार पर भी सवालिया निशान है। हालांकि, शराब की बिक्री अब भी उन राज्यों में जारी है, जहां वर्षो से शराबबंदी है, लेकिन इससे न तो बिहार को क्लीनचिट मिल जाती है और न ही उन राज्यों को जहां शराब बेचकर सरकारी खजाने को दिन दूना और रात चौगुना भरा जा रहा है। तीनों राज्यों में जहरीली शराब का सेवन करने से सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोगों की हालत गंभीर है। मरने वालों का आंकड़ा बढ़ सकता है। यूपी में कुल 75 तो उत्तराखंड में 32 लोगों की मौत हो गई है। वहीं 11 लोग गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं। बिहार में भी तीन की मौत हुई है। लाख दावों के बाद भी जहरीली शराब के कारोबार पर अंकुश नहीं लग सका है। गांव-गांव कच्ची शराब बनती और बिकती है, पर आश्चर्य है कि पुलिस और प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगती या यूं कहें कि समूचे तंत्र की शह पर ही मौत का यह कारोबार पनपता है।
जिन राज्यों में पूर्ण शराबबंदी लागू है, वहां भी और जहां धड़ल्ले से शराब बिक रही है, वहां भी लोग बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर हमारे नीति-नियंताओं की पेशानी पर बल नहीं दिख रहा है। सरकार और प्रशासन की लापरवाही का शिकार अब उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के वे लोग हुए हैं, जो जहरीली शराब पीकर मर चुके हैं और उनके परिवार में मातम पसरा हुआ है। जहरीली शराब को लेकर स्थिति इतनी विकट है कि समय-समय पर हर राज्य में किसी न किसी की मौत हो जाती है। वैसे, इस कारोबार के लिए सिर्फ पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा। राजनीतिक नेतृत्व भी इसके लिए जिम्मेदार है। पार्टी और सरकार कोई भी हो, कभी किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। कई नेता तो बाकायदा चुनाव में जीत के लिए अवैध शराब को हथियार बनाते हैं। गरीब-गुरबों को बहलाकर शराब पिलाई जाती है और इस आड़ में अनैतिक काम भी कराए जाते हैं। पीढ़ियां चौपट हो रही हैं, बच्चे स्कूल जाने के बजाय शराब बनवाते हैं और फिर वही उनका पेशा बन जाता है। पीने वाले आसपास का माहौल खराब करते हैं। अपने घरों का माहौल भी बिगाड़ते हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या पर अंकुश लगाए, ताकि लोगों को बेमौत मरने से रोका जा सके और समाज का भला हो।
जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते हैं। अगर हर गली नुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही। जहां शराब बंदी करने का दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और फिर खराब गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है, जो जानलेवा साबित होती है। शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है। वैसे भी हर सरकार की कोशिश रहती है कि राजस्व बढ़ाने के लिए शराब के धंधे का ज्यादा से ज्यादा दोहन कर ले। जाहिर है, ऐसे में लोगों को नशे या जहरीली शराब से बचा पाना संभव नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘अगर मैं एक दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों और कारखानों को बंद करा दूंगा।’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बर्बादी का बड़ा कारण यह शराब ही है। कुछ वर्षो पहले केरल सरकार ने राज्य में शराबबंदी का ऐलान कर इस मुद्दे पर फिर बहस छेड़ दी थी। केरल के बाद बिहार वह राज्य बना, जिसने अपने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की। लेकिन सच यह भी है कि पूर्ण शराबबंदी को लागू करना प्रदेश सरकारों के लिए संभव ही नहीं रहा। जिस भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई, वहां शराब की तस्करी बढ़ गई।
देश में सबसे पहले महाराष्ट्र में शराबबंदी लागू हुई। इसकी खिलाफत में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। अप्रैल, 1950 में मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने राज्य में शराब पर बैन लगाया, तो अदालत में व्यक्तिगत आजादी के आधार पर अधिनियम को चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने द स्टेट औफ बौंबे वर्सेज एफएन बालसरा मामले में 1951 में फैसला सुनाते हुए अुनच्छेद 47 की विस्तार से व्याख्या की कि जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तथा राज्य के द्वारा शराबबंदी लागू करने में कोई परस्पर विरोध नहीं है। साथ ही शीर्ष अदालत ने अलकोहल का औषधीय प्रयोग और साफ-सफाई के रसायन के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। इस समय देश में गुजरात, मिजोरम, बिहार व नगालैंड ऐसे प्रदेश हैं, जहां पूर्ण शराबबंदी है। गुजरात में तो आजादी के बाद से ही शराब पर पाबंदी है, मगर अफसोस यह महज कहने को ही है। वहां शराब हर जगह आसानी से उपलब्ध है। अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस महकमा हर साल सवा सौ करोड़ की अवैध शराब जब्त करता है। हर साल जहरीली शराब पीने से मौत होती हैं। 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 148 लोग मारे गए थे।
मिजोरम राज्य में 1995 में शराबबंदी का कानून पारित किया गया था। मगर अगस्त, 2014 में शराबबंदी खत्म करने का फैसला कर नया कानून पारित कर दिया गया। सरकार का मानना था कि शराबबंदी से लाभ कम नुकसान ज्यादा हो रहा है। नागालैंड में भी इसी समय से शराबबंदी लागू है। गौरतलब है कि देश में सब से ज्यादा शराब की खपत केरल में ही होती है। राज्य को 22 फीसदी राजस्व शराब से ही हासिल होता है। जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते। इस मामले में भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए। वहां सिगरेट के सेवन से सेहत पर होने वाले नुकसान को देखते हुए सरकार ने बाकी देशों से सिगरेट की सात गुना ज्यादा कीमत तय कर दी है। इससे लोगों ने सिगरेट खरीदना कम कर दिया है। सिगरेट के पैकेटों पर भयानक चेतावनी छापने के साथ-साथ सजा भी तय कर दी गई है। इस से लोगों में डर पैदा हो गया है। उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना बंद कर दिया है। सिगरेट का पैकेट फेंकते पकड़े जाने पर भी जेल भेज दिया जाता है।
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लेकिन हमारे यहां तो सरकारों की नीतियां सिगरेट पीने से रोकने के बजाय उन्हें सहजता से उपलब्ध कराने वाली हैं। फिर शराब की बात कुछ और है। ऐसे में समाज का तानाबाना टूटना लाजिमी है। यदि सरकारें उपलब्धता पर नियंत्रण करें, तब ही लोगों को इन के सेवन से रोका जा सकता है। दरअसल, शराब का असली नशा तो इस धंधे की कमाई की चाशनी में डूबने वालों पर ही ज्यादा चढ़ता है। फिर चाहे वे सरकारें हों या शराब का धंधा करने वाले। सभी चाहते हैं कि शराब से उन की तिजोरियों की सेहत हर दिन दुरुस्त होती रहे। प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब फल-फूल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं। सरकार के पास पढ़े-लिखे, अनपढ़ और अमीर-गरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंग्रेजी शराब तक का बंदोबस्त है। शराब को घर-घर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए। दरअसल, पैसे कमाने की सहूलियत के लिए इसे कानूनी और गैरकानूनी बता दिया गया है यानी जो सरकार बेचे, वह कानूनी है और जिस से उस का फायदा न हो, वह गैरकानूनी। यही समस्या की असल जड़ है।
डॉ. हरिमोहन उपाध्याय (स्वतंत्र टिप्पणीकार)