राज एक्सप्रेस, भोपाल। देश में गोरक्षा के नाम पर होने वाली वारदातें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। बुलंदशहर (Bulandshahr Violence) के रूप में नया कांड हमारे सामने है। यहां गोवंश मिलने पर गुस्साई भीड़ ने एक पुलिस इंस्पेक्टर को मार डाला और फिर थाने पर हमला किया। देश के अधिकांश राज्यों में गोहत्या और गो तस्करी के खिलाफ सख्त कानून बने हुए हैं। सख्त सजा का भी प्रावधान है। फिर गोरक्षकों को कानून अपने हाथ में लेने का क्या हक है?
गोहत्या के नाम पर हत्यारी भीड़ ने एक बार फिर दो बेकसूर इंसानों को जान से मार डाला। इस मर्तबा यह दर्दनाक वाकिया बुलंदशहर जिले के स्याना में पेश आया। जहां गोकशी के शक में भीड़ ने पहले तो भयंकर हंगामा किया और फिर हिंसा पर उतर आई। भीड़ ने जमकर पथराव भी किया। वहां खड़ी 18 गाड़ियां फूंक दीं। गुस्साए कथित गोरक्षकों की हिंसा में पुलिस इंस्पेक्टर की मौत हो गई। हिंसक भीड़ यहीं शांत नहीं हुई, बल्कि उसने पुलिस चौकी के भीतर सीओ समेत अन्य पुलिसवालों को बंधक बना लिया और बाहर से आग लगा दी। बैरक का रोशनदान तोड़कर यह सब लोग बाहर निकल आए, वरना मामला और भी ज्यादा गंभीर हो सकता था। बचाव में पुलिस ने जब जवाबी कार्रवाई शुरू की, तो उसमें एक नौजवान की जान चली गई। वहीं कई लोग और पुलिसकर्मी घायल हो गए। भीड़ के इस उपद्रव के बाद बुलंदशहर जिले के अलावा गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर में स्थानीय प्रशासन ने एहतियातन धारा 144 लगा दी है। गाजियाबाद में धारा 26 दिसंबर तक लागू रहेगी। वहीं नोएडा-ग्रेटर नोएडा में दो माह तक यह व्यवस्था रहेगी। बुलंदशहर जिले में किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पांच कंपनी आरएएफ तथा छह कंपनी पीएसी पहले से ही तैनात थी, सुरक्षा के लिए अब और पुलिस बल भेजा गया है।
जिस घटना से बुलंदशहर समेत पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश पल भर में अशांत हो गया, वह घटना स्याना कोतवाली इलाके के महाव गांव की है। जहां खेतों में अज्ञात लोगों ने कुछ मवेशी मार दिए थे। यह सूचना मिलने पर स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया। लोग घटनास्थल पर पहुंचे और अवशेषों को ट्रैक्टर-ट्रॉली में भर चिंगरावठी पुलिस चौकी ले गए। जैसा कि होता है पुलिस ने इस मामले में भी अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली, लेकिन गुस्साई भीड़ इस पर संतुष्ट नहीं हुई और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए बुलंदशहर-गढ़मुक्तेश्वर हाईवे पर ट्रैक्टर ट्रॉली लगाकर जाम कर दिया। स्याना कोतवाली के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार ने पुलिस के साथ सैकड़ों लोगों की भीड़ को समझाने की कोशिश की, पर वे नहीं माने। पुलिस का कहना है कि जब उसने जाम खुलवाना चाहा तो भीड़ ने पथराव कर दिया। स्थानीय लोगों का इल्जाम है कि प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें पुलिस इंस्पेक्टर समेत एक स्थानीय नागरिक की मौत हो गई।
जिन लोगों ने भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर इस घटना के वीडियो देखे हैं, उनसे साफ मालूम चलता है कि हिंसक भीड़ ने किस बेरहमी से पुलिस इंस्पेक्टर को मारा और जमकर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान किया। क्या आदमी गुस्से की आग में इतना वहशी भी हो सकता है कि पीट-पीटकर किसी की हत्या कर दे? समाज में कोई भी अपराध घटता है, तो अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस है और उसे सजा दिलाने के लिए कानून। कानून की एक तयशुदा प्रक्रिया है, जिसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। कैसा भी अपराध हो, लोग अपने हाथ में कानून नहीं ले सकते। यदि लोग खुद ही इंसाफ करने लगेंगे, तो पुलिस और कानून की क्या भूमिका होगी? गोरक्षा के नाम पर कथित गोरक्षकों द्वारा की जा रही हिंसा का यह पहला मामला नहीं है, बल्कि इस तरह के मामले देश में आए दिन सामने निकलकर आते रहते हैं। इन मामलों में शीर्ष अदालत की कड़ी फटकार और स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बाद भी गोरक्षकों की हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। बीते साल जुलाई में शीर्ष अदालत ने जब केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया था, तो अदालत में अपना हलफनामा दाखिल करते हुए, उसने कहा था कि केंद्र किसी भी तरह ऐसे अपराधियों के संरक्षण की आलोचना करता है। लेकिन अफसोस! केंद्र के इस जवाब के बाद भी देश में गोरक्षा के नाम पर हिंसक घटनाएं नहीं रुकी हैं। हिंसा की ज्यादातर वारदातें भाजपा शासित राज्यों में हुई हैं। जिसमें 10 घटनाओं के साथ यूपी अव्वल नंबर पर है।
सब जानते हैं कि देश के अधिकांश राज्यों में गोहत्या और गो तस्करी के खिलाफ सख्त कानून बने हुए हैं। कई राज्यों में तो इस अपराध के लिए अपराधियों को तीन साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा है। फिर गोरक्षकों को कानून अपने हाथ में लेने का क्या हक है? कानून के मुताबिक हिंसक कार्यवाइयों में संलिप्त कथित गोरक्षकों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं में कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन राज्य सरकार से इन्हें बकायदा पहचान पत्र मिले हुए हैं, जिससे ये कार्रवाई से छूट पा रहे हैं। बुलंदशहर मामले को यदि देखें, तो यह बात सच है कि वहां खेतों में गोवंश अवशेष मिले हैं। लेकिन गोहत्या किसने और क्यों की? यह जांच के बाद ही मालूम चलेगा। इसके पीछे बड़ी साजिश भी हो सकती है? पश्चिमी उत्तर प्रदेश सांप्रदायिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है, घटना की आड़ में कहीं इस पूरे क्षेत्र को सुलगाने की कोशिश तो नहीं हो रही? जिससे भविष्य में वोटों की फसल काटी जा सके। गोरक्षा के नाम पर जो लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही जरूरी है। फिर वे चाहे किसी पार्टी या संगठन से जुड़े हुए हों। यदि सरकारें इस मामले में संजीदा होतीं, तो सबसे पहले गोरक्षा के नाम पर बने नाजायज और गैर कानूनी संगठनों पर पूरी तरह से पाबंदी लगातीं। फिर उसके बाद हिंसक घटनाओं में शामिल उत्पाती लोगों पर कड़ी कार्यवाही की सिफारिश करतीं। लेकिन अफसोस! ऐसी कोई सकारात्मक पहल कहीं से नहीं हुई है। यही वजह है कि इन कथित गोरक्षकों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। कल तक इनके निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक और दलित वर्ग के ही लोग थे, अब पुलिस प्रशासन भी आ गया है। इन कथित गोरक्षकों ने बुलंदशहर में पहले अकेले पड़ गए एक पुलिस इंस्पेक्टर को दौड़ा-दौड़ाकर मारा-पीटा और फिर उसकी गोली मारकर जान ले ली। गोरक्षा की आड़ में इन कथित गोरक्षकों ने जिस तरह से कानून का खुला उल्लंघन किया है, वह बेहद निंदनीय है।
बुलंदशहर मामले की जांच के लिए कहने को योगी सरकार ने आईजी की अध्यक्षता में एक एसआईटी बना दी है। दिवंगत इंस्पेक्टर की पत्नी को चालीस लाख रुपए, परिवार को दस लाख रुपए मुआवजा और घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान भी किया है, लेकिन यह एसआईटी निष्पक्ष जांच करेगी, इंसाफ पसंदों का इस बात का जरा सा भी यकीन नहीं है। सरकार इस मामले की जांच के लिए यदि वाकई गंभीर है, तो वह अदालत की निगरानी में एसआईटी का गठन करे। ताकि इस घटना का पूरा सच देश के सामने आ सके। यही नहीं राज्य में उन तथाकथित गोरक्षक संगठनों पर पाबंदी लगाई जाए, जो गोहत्या के नाम पर बेकसूरों को जान से मारने के लिए जरा सा भी नहीं हिचकते। देश में इस तरह के मामले कहीं भी पेश आएं, बेहद संवेदनशील हैं। इस तरह के मामलों पर पुलिस और सरकार को तुरंत कार्यवाही करना चाहिए। लेकिन अफसोस, सरकारें कहीं भी तत्परता से काम नहीं करतीं। यही वजह है कि कभी तो राजस्थान के अलवर, उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा, सहारनपुर तो कभी झारखंड के जमशेदपुर से भीड़ द्वारा हिंसक घटनाओं के होने की खबरें आती ही रहती हैं। बुलंदशहर और आसपास के इलाकों में किसने गोहत्या होने की अफवाह फैलाई व किसने बेगुनाहों के खून से होली खेली, यह जांच का विषय है। उत्तरप्रदेश सरकार पहले इस पूरे मामले की निष्पक्ष ढंग से जांच कराए और जांच में जो भी दोषी पाया जाए, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले। वरना इस तरह के मामलों में कमी नहीं आएगी और अपराध करने वालों की संख्या बढ़ती जाएगी। बुलंदशहर की वारदात को हमें बेहद गंभीरता से लेना होगा और मुकम्मल व्यवस्था बनानी होगी।
जाहिद खान (वरिष्ठ पत्रकार)